Friday, August 27, 2010

क्या आप चेतन भगत के बात से सहमत हैं?

(सुनील)
प्रसिध्द लेखक चेतन भगत के 26 अगस्त, दैनिक भास्कर में कॉमनवेल्थ गेम्स पर छपी उस लेख जिसमें उन्होंने देश की जनता से इस खेल का बहिष्कार और स्टेडियम में न जाने की अपील की है, क्या उचित है और क्या आप उनके इस बात से सहमत है। स्तंभ में छपी कुछ बातें -
'यदि हम इस आयोजन का समर्थन करते हैं तो यह हमारी गलती होगी। यह भारत के नागरिकों के लिए एक सुनहरा मौका है कि वे इस भ्रष्ट और संवेदनहीन सरकार को शर्मिंदगी का एहसास कराए। आमतौर पर भ्रष्टाचार के मामले स्थानीय होते हैं और वे पूरे देश का ध्यान नहीं खींचते लेकिन राष्ट्रमंडल खेलों के मामले में ऐसा नहीं है। यह एक ऐसा आयोजन है जिसमें किसी एक क्षेत्र या प्रदेश विशेष की जनता नहीं बल्कि पूरे देश की जनता ठगी गई है। यह सही समय है जब हम भ्रष्टाचार के खेल का पर्दाफाश कर सकते हैं और इसके लिए हमें वही रास्ता अख्तियार करना होगा, जो हमें बापू ने सुझाया है - असहयोग। मैं काफी सोच-समझकर ऐसा कह रहा हूं। राष्ट्रमंडल खेलों का बहिष्कार करें। न तो खेल देखने स्टेडियम में जाएं और न ही टीवी पर देखें। हम धोखाधडी के खेल में चीयरलीडर की भूमिका नहीं निभा सकते। भारतीयों का पहले भी काफी शोषण किया जा चुका है। अब हमसे यह उम्मीद करना और भी ज्यादती होगी कि इस खेल में मुस्कुराते हुए मदद भी करें। यदि वे संसद से वॉकआउट कर सकते हैं तो हम भी स्टेडियमों से वॉकआउट कर सकते हैं।'
        ये सच है कि गेम्स से जुडे अधिकारियों और नेताओं ने भ्रष्टाचार की नई मिसाल खडी करते हुए भारत की प्रतिष्ठा को ताक पर रख दिया है। उन्होंने तो आदतन वैसा ही किया जैसा उनसे उम्मीद की जाती है। यदि ऐसे में देश की जनता भी स्टेडियमों में जाने से इंकार कर दे तो विश्वस्तर पर हमारी क्या इज्जत रह जाएगी। ये वक्त देश में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स के बहिष्कार का नहीं बल्कि हमारी प्राथमिकता इसके सफल आयोजन पर होनी चाहिए। हमें यह याद रखना होगा कि ये कोई घरेलू आयोजन नहीं है, पूरे विश्व की इस पर नजर है। ऐसे में देश की जनता का सहयोग नितांत जरूरी है। जरा सोचिए कि देश में होने वाले गेम्स में यदि भारतीय दर्शक नजर नहीं आएंगे तो विश्व में हमारी क्या छवि रह जाएगी। इस गेम में देश का हजारों करोड रुपया फंसा हुआ है और यदि भारतीय दर्शक स्टेडियम नहीं पहुंचते हैं तो भारतीय अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो सकती है। जहां तक बात है बापू के असहयोग आंदोलन का तो वह विदेशी दुश्मनों को देश से बाहर खदेडने के लिए था लेकिन यहां तो देश का दुश्मन अपने ही लोग हैं। इनसे निपटने के लिए नेताओं का असहयोग करना होगा न कि खेलों का।