Saturday, December 25, 2010

वतन का खाया नमक तो नमक हराम बनो

(सुनील)

वतन का खाया नमक तो नमक हराम बनो
राजा और सुरेश कलमाडी जैसा बेईमान बनो
पराई नार और पराया धन पर जितना हो नजर डालो
एक नहीं कई नीरा को रातों रात बना डालो
जनता का पैसा है, इसे अपना समझ घर में घुसा डालो
कागजों और फाइलों का क्या है
जब चाहे गुम कर डालो
पैसे का खेल है,
छानबीन का तमाशा कर डालो
सीने पे ठोक के हाथ
अपने आप पे गुमां करो
सरकार और विपक्ष का क्या है,
एक ही थाली के चट्टे-बट्टे
खुद भी खाओ और इन्हें भी खिला डालो
क्योंकि
ये आदत तो वो आदत है,
जो रातों-रात अपना घर भरे दे, भर दे, भर दे रे..
कि कोई नया गेम शुरू करवा दो
बाकी लोगों को भी भ्रष्टाचार और घोटाले का मौका दो।

Thursday, December 23, 2010

तेरे हाथों में वो जादू है...

(सुनील) www.sunilvaniblogspot.com

प्याज को लेकर केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार की चुस्ती-फुर्ती देखकर मन गदगद हो गया। आनन- फानन में 400 सरकारी केंद्रों पर प्याज की ब्रिकी भी शुरू कर दी गई। लेकिन दिल्ली सरकार का यह कदम मन में एक डर पैदा कर रहा है। सुना है दिल्ली सरकार के हाथों में गजब का कमाल है, जिस चीज को वो बेचने का निर्णय कर लेती है, वो आम से खास हो जाती है और यही मेरे डर का कारण है। इस बात की चिंता मुझे लगातार सताए जा रही है कि प्याज भी कहीं खास न बन जाए और आम लोगों से दूर होकर केवल खास-खास थालियों में ही न दिखने लगे। पहले तो रोटी-दाल से हाथ धो लिया, अब ऐसा न हो कि रोटी-प्याज-नमक से भी हाथ धोना पडे। बडे-बूढे कहते हैं कि हमारी दिल्ली सरकार बहुत ही खास है। पहले आटा बेचना शुरू किया तो आटा महंगा हो गया, उसके बाद दाल बेचना शुरू किया तो लोगों की थालियों से दाल गायब हो गई। अब प्याज बेच रही है तो आम लोगों के किचन में बचेगा क्या। यही नहीं इनके नक्शे कदम पर डेयरीवाले भी हैं। जिन डेयरियों पर इन्हें बेचने का निर्णय किया जाता है वहां रातों-रात दूध महंगा हो जाता है। सरकारी केंद्रों पर सरकार द्वारा 40 रुपए प्याज बेचा जाना, क्या इस कीमत को सस्ता कहा जा सकता है और यदि नहीं तो हम सब सरकार के इस कदम को वाह-वाही क्यों दे रहे हैं। मातम मनाओ कि अब जल्द ही प्याज भी चंदा मामा जैसी दूर की चीज हो जायेंगे।

Monday, December 13, 2010

darane laga hain ye shahar

सुनील कुमार


डर लगने लगा है इस शहर से,

हर घडी, हर पहर में

राह चलते डराती हैं उनकी नजरें

बस अब तो हर चेहरे में

अपराधी और बदमाश ही नजर आता है मुझे।

भ्रष्टाचार, बलात्कार और अत्याचार,

बन गई है इस शहर की पहचान,

अब तो हर अपना भी,

अनजान लगने लगा है मुझे।

जिन गलियों में गुजरते थे बेवाकी से

शाम ढलते ही बेगाना सा हो जाता है

क्या बताऊं तुझे ऐ शहर

अब तो अपना दरवाजा भी बेगाना लगने लगा है मुझे

13दिसंबर