Sunday, January 30, 2011

गाँधी के आदर्शों का ‘शहीदी दिवस’

(सुनील) www.sunilvani.blogspot.com 7827829555

 अनुशासन, ईमानदारी, सच्चाई और न जाने किन-किन आदर्शों के लिए गाँधी जी को जाना जाता है. जो बस एक खानापूर्ति मात्र रह गया है. किताबों में इन आदर्शों के बारे में बच्चों को केवल ज्ञान दिया जाता है, जिसका आज के जीवन से बहुत कुछ सम्बन्ध होते हुए भी कुछ वास्ता नहीं रह गया है. हमारी लाइफ स्टाइल ही कुछ ऐसी हो गई हैं जहाँ इन आदर्शों के कुछ मायने नहीं रह जाते. ये अलग बात हैं हम आज भी मंच पर जाकर उनकी आदर्शवादिता से रूबरू होते हैं, सुनने में अच्छा जो लगता है, और सामने वाला भी भला मानुस प्रतीत होता है. लेकिन सच तो ये है कि अनुशासन का अनुसरण करने वाला अब कोई नहीं रहा, ईमानदारी को भ्रष्टाचार के दीमक ने चट कर लिया और सच्चाई शब्दकोष में खो कर रह गई है. भला ऐसे में शहीदी दिवस को क्यूँ न आदर्शों के शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाय. शायद इस वजह से थोड़ी शर्म आ जाय उन लोगों को जिन्होंने गाँधी की तस्वीर वाले नोटों को भी ब्लैक मनी में तब्दील कर दिया. उन लोगों को जिन्होंने भ्रष्टाचार में हम कई पायदान आगे धकेल दिया, उन लोगों को जिनको हमने देश का उत्तरदायित्व सौपा था अब वही गांधी के अहिंसा के सिद्धांतों का मखौल उड़ाते हुए धर्म के नाम पे दंगे करवा रहे हैं, उन लोगों को जो देश में कालाबाजारी कर हमें महंगाई की आग में झोक रहे हैं, उन लोगों को जिनके रिश्वत लेने कि वजह से योग्य आदमी सही जगह नहीं पहुच पाता. और आखिर में हम सबको, क्योंकि इस व्यवस्था जिसका हिस्सा कहीं न कही हम भी हैं इन सबमे उनका साथ देने में. यानि हम सब हर रोज उनके आदर्शों की एक-एक पंक्तियाँ जला कर गाँधी को अपने आप से दूर कर रहे हैं.

Monday, January 24, 2011

मिलन अभी आधा अधूरा है...

(सुनील) http://www.sunilvani.blogspot.com/ 7827829555

20 जनवरी को हुए ब्लॉग सम्मेलन में मुझे भी शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पहली बार मैं किसी ब्लॉग सम्मेलन में शामिल हुआ। इस सम्मेलन में मुझे एक खास अपनापन सा महसूस हुआ। हालांकि मैं सबों के लिए नया चेहरा था इस कारण मेरे और उनके बीच में कुछ दूरियां थीं और सबों से ठीक तरह मिल भी नहीं पाया। लेकिन उम्मीद करता हूं कि ये दूरियां आने वाले दिनों में इस तरह के कार्यशालाओं में लगातार शामिल होने से दूर हो जाएंगी। तब यह अपनापन और भी बढ जाएगा। वैसे ब्लॉग के प्रति लोगों का जज्बा देख कर दिल गदगद हो उठा, क्योंकि लोगों में ब्लॉग के प्रति उत्सुकता ही नहीं बल्कि इस ब्लॉग के जरिए काफी कुछ बदलने की ताकत भी देखा और यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में यह ब्लॉग लोगों के लिए सशक्त माध्यम होगा जहां से हर व्यक्ति न केवल अपनी समस्याओं को उठा सकेगा बल्कि हर घर में प्रत्येक सदस्य अपने आप में पत्रकार होगा और पत्रकारिता को भी एक नया स्वरूप मिलेगा। आने वाले समय में यह विधा जन-जन से जुडे इसके लिए इस तरह के सम्मेलन और कार्यशाल का आयोजन काफी महत्वपूर्ण होगा। देश के कोने-कोने से लोग ब्लॉग को जाने और बडे स्तर पर मिलने जुलने का मौका मिले। प्रत्येक राज्य से ब्लॉग के प्रति लोगों का जुडाव हो और ये आधा अधूरा मिलन संपूर्ण रूप में बदल जाए। बस यही कामना है। धन्यवाद

Friday, January 21, 2011

काला धन बनाम सफेदपोश

(सुनील) http://www.sunilvani.blogspot.com/ 7827829555
काले धन को उजागर होने के बाद यह बात तो साफ हो गई है कि भारत के पास अथाह धन है जो चाहे तो अमेरिका और चीन को पीछे छोडते हुए आर्थिक संपन्नता के मामले में इनसे आगे निकल सकता है। हालांकि यह कब तक संभव हो पाएगा इस मसले पर बडे-बडे ज्योतिषियों के गुणा-भाग भी काम नहीं आ रहा हैं। सरकार भी ऊहापोह की स्थिति में है और लगातार इस मामले की हीलाहवाली कर रही है। सरकार को भी पता है कि इस काले धन के साथ अनेक ऐसे सफेदपोश जुडे हुए हैं, जो खुद उनका ढाल बने हुए हैं। ऐसे में सरकार के अस्थिर होने का खतरा है, साथ ही जनता का विश्वास भी इन तथाकथित सफेदपोशों के प्रति कमजोर होगा। शायद यही वजह है कि सरकार भी इन नामों को खुलासा करने से कतरा रही है। जैसे भारतीय संस्कृति में पत्नियां अपने पति का नाम लेने से कतराती है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट इस काले धन को राष्ट्रधन बताकर सरकार पर उन नामों को जनता के सामने लाने का दबाव बना रही है लेकिन बडे-बडे नेताओं और मंत्रियों की इस मामले पर चुप्पी कुछ और ही इशारा कर रही है। क्या सरकार पर बाहरी दबाव काम कर रही है, जिसके कारण सरकार भी असमंजस की स्थिति में है। आखिर सरकार को अपनी साख और ताख भी बचानी है लेकिन इस मसले पर आखिरकार कोई ठोस निर्णय तो लेना ही होगा। आखिर सवाल 700 खराब का है जो भारत को अन्य विकसित देशों के मुकाबले एक अलग पहचान दे सकती है। भूख, गरीबी, बिजली, शौचालय, परिवहन जैसे मूलभूत समस्याओं से अब तक जूझ रहे लोगों के लिए यह पैसा वरदान साबित हो सकता है। यह पैसा ग्रामीण परिवेश को भी बदलने में कारगर साबित हो सकता है। साथ ही सरकार भी सरकारी खजाने का रोना नहीं रो पाएगी। इन सबके बीच अब सबसे महत्वपूर्ण यह है कि काले धन को लाने में सफेदपोश अपनी भूमिका किस प्रकार निभाते हैं। डर इस बात का है कि इनकी कथनी और करनी में हमेशा की तरह अंतर न आ जाए।

Tuesday, January 18, 2011

मौजूदा सरकार को कितने अंक दें?

(सुनील) http://www.sunilvani.blogspot.com/ 7827829555


क्या यह सरकार वास्तव में कमजोर है, लाचार है, बेबस है या मजबूर है? क्या तजुर्बेकारों की यह टोली केवल दिखावा मात्र है? ऐसे न जाने कितने प्रश्न इस गठबंधन सरकार के लिए लोगों के मन में कौंधने लगा है। हालांकि भ्रष्टाचार और महंगाई के मामलों में अव्वल यह सरकार लगातार सात सालों से शासन कर रही है, ये भी अपने आप में बहुत बडा आश्चर्य है। किसी का किसी पे कोई नियंत्रण नहीं दिखता। सभी अपने अपने राग अलापने में लगे हुए हैं और अपनी अपनी मनमानी कर रहे हैं। जयराम रमेश एक सनकी मंत्री के रूप में उभर रहे हैं तो ए राजा भ्रष्टाचार को ही अपना सब कुछ बना बैठे हैं। इधर सुरेश कलमाडी अपना खेल खेलकर विजयी मुद्रा में दिख रहे हैं और अपनी जीत का जश्न मना रहे हैं। कपिल सिब्बल अपने अलावा सभी फाइलों में गलतियां निकालने में लगे हुए हैं और शरद पवार का बयान लगता है जैसे मौसम की भविष्यवाणी कर रहे हों। इन सबके बीच बेचारे प्रधानमंत्री खुद ही अपने आप को पीएसी के सम्मुख पेश होने का फरमान जारी कर देते हैं। जैसे एक पिता अपने पुत्रों की गलतियों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहा हो। शांत और ईमानदारी निश्चित रूप से प्रधानमंत्री का आवश्यक गुण है, मगर अपने मंत्रियों पर नियंत्रण न होना, खुद को कमजोर और मजबूर दिखाना, किसी ठोस निर्णय पर न पहुंच पाना, ये लक्षण अगर दिखने लगे तो फिर उनका केवल शांत प्रिय और ईमानदार होना देश के लिए हितकर होगा। ऐसे में देशवासियों को मौजूदा सरकार को किस रूप में आंकना चाहिए और इसे कितने अंक दिए जाने चाहिए। शायद इसलिए सरकार ने अंक पध्दति खत्म कर ग्रेडिंग सिस्टम लागू कर दी ताकि कोई किसी भी स्तर पर फेल न हो और सबकुछ यूं ही चलता रहे। तो फिर गर्व से कहो हम भारतीय हैं?

Saturday, January 15, 2011

...और खिलाओ नेता-मंत्री को अपने यहां

सुनील (7827829555)

गरीब का कथन
साईं इतना दीजिए, जामे कुटुम्ब समाय
मंत्रीगण भी भूखा न रहे, युवराज भी भूखा न जाए

नेता का रिटर्न गिफ्ट
साईं दलित को इतना दीजिए, देश का नेता यहां खाए
पेट भर जब संसद पहुंचे, महंगाई के लिए इन्हें दोषी ठहराय

Saturday, January 8, 2011

अंधी और बहरी सरकार के साथ नख-शिख विहीन विपक्ष

(सुनील) 7827829555

पता नहीं ये राजनीति लोगों को और क्या-क्या दिखाएगी। नित नए हो रहे आश्चर्यजनक खुलासों से आम आदमी दांतों तले अंगुलिया दबाने को मजबूर है। जनता अब यह सोचने को मजबूर है क्या यह वही सरकार है जिसे इतने विश्वास के साथ हमने चुना था। घोटालों और भ्रष्टाचार के नाम पर देश नए आयाम को छूने जा रहा है। हमारा देश तो अब इस मामले में नया इतिहास लिखने को तैयार है और इस बात की भी गुंजाइश है कि छात्रों को पुराने इतिहास की बजाय इस ताजातरीन इतिहास से अवगत कराया जाय। सरकार को जिस विश्वास के साथ जनता ने गद्दी सौंपी थी, वह देशाभिषेक के साथ ही धृतराष्ट्र हो गई। इतना ही नहीं इस धृतराष्ट्र ने तो अपने कान भी बंद कर लिए हैं। यानि यह सरकार अपने हाथों और पंजों का सही इस्तेमाल कर रही है। सबसे मजेदार बात यह है कि इस सरकार के साथ-साथ विपक्षी दलों की खासियत भी जग जाहिर होने लगी है। अंधी और बहरी सरकार के साथ जनता को गूंगे और ताकतविहीन विपक्ष का तोहफा मिला है। इसकी आवाज सरकार के नक्कारखाने में तूती बनकर रह गई है। जाहिर सी बात है कि विपक्ष की इस कमजोरी ने ही सरकार और उसके मंत्रियों के हौसले इतने बुलंद कर दिए है कि घोटाला करने का एक भी मौका नहीं छोडते। इस मामले में ये नई इबारत लिख रहे हैं। महंगाई ने किचन से अन्न गायब कर दिया और घोटालों ने देश से रुपया। यानी अब महमूद गजनवी अब अपने देश में ही पैदा हो रहे हैं तो दूसरे गजनवी को पढने की जरूरत क्या है। किसी समय बच्चों को सुनाई जाने वाली अंधेर नगरी चौपट राजा की कहानी भी बेमानी हो गई है। उस कहानी में टके सेर मिलने वाली भाजी और खाजा अब सोने की कीमतों से मुकाबला कर रहा है।

Thursday, January 6, 2011

तेरे और मेरे में बस इतना फर्क है

(सुनील) www.sunilvani.blogspot.com 7827829555


ऐ दोस्त तेरे और मेरे में बस इतना फर्क है
की तू जब चाहता है तब खाता है
और हमें जब मिल जाय तब खाते हैं.
ऐ दोस्त तेरे और मेरे में बस इतना फर्क है
की तू वो परिधान पहनता है,
जिसमे एक भी पैबंद न हो
और हम वो वस्त्र पहनते हैं
जिसमे दो-चार पैबंद न हो.
ऐ दोस्त तेरे और मेरे में बस इतना फर्क है
की तेरे पांव जमीन पे नहीं पड़ते
और हम मीलों यूँ ही निकल जाते हैं.
ऐ दोस्त तेरे और मेरे में बस इतना फर्क है
की तू अपने बूढ़े माँ बाप को ओल्ड एज होम में रखता है
और हम आज भी अपने रोम रोम में
ऐ दोस्त तेरे और मेरे में बस इतना फर्क है......

Monday, January 3, 2011

पति पत्नी मिलके कमात है, फिर भी....

(सुनील) 7827829555

अब तो पति पत्नी मिलके कमात है,
फिर भी बच्चा भूखे सोवत है.
किचेन में अब खाली डब्बा दिखत है,
बच्चा हमर भूखे सोवत है.
दूध-दही के नामों न निशानी,
अब तो माँ के छाती भी सुखत जात है.
नेता मंत्री तो खूबे मजा लेत है,
आम जन मरत जात है.
अब तो पति पत्नी मिलके कमात है,
फिर भी भर पेट नहीं भोजन मिलत है.