Wednesday, November 9, 2011

अन्ना और कांग्रेस के विवादों के बीच लोकपाल बिल का इंतजार

जन लोकपाल को लेकर अन्ना-कांग्रेस के बीच लंबे समय से चली आ रही विवाद जल्द थमने के आसार नहीं नजर आ रहे हैं। कभी सरकार का पलड़ा भारी होता है तो कभी अन्ना टीम का। लेकिन यह कभी देखने को नहीं मिला कि दोनों के बीच शांतिपूवर्क हल निकालने का प्रयास किया जा रहा हो। दोनों ही अपने को श्रेष्ठ और अपने सदस्यों को भ्रष्टाचार विहीन दिखाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन देश को कैसे भ्रष्टाचार मुक्त बनाया जाए, आजादी के साढ़े छह दशक बाद भी किसी को रास्ता नहीं सूझ रहा है या फिर इस हमाम के मजे सभी लेना चाहते हैं और इसलिए इसे दिशा में ठोस पहले करने की जरूरत भी नहीं समझते।

खैर, अन्ना ने जब भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को देश के सामने लेकर आए तो ऐसा लगा कि काफी समय बाद फिर एक ऐसा शख्स आया है जो आम लोगों के लिए लड़ रहा है और इसी कारण देश के तमाम आवाम ने पूरी निष्ठा के साथ उनका साथ दिया। इसी दबाव में आकर सरकार ने भी अपनी ओर से आश्वासन दे डाला। सरकार ने मजबूत लोकपाल लाने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताई लेकिन बदले में अपनी कमजोर लोकपाल संसद में पेश कर दिया। गुस्साए अन्ना ने फिर से अपना अनशन का बिगुल फूंका, मगर सरकार को कहां ये चीज रास आने वाली थी। जैसे-तैस और काफी नौटंकी के बाद जब रामलीला मैदान में अन्ना को अनशन करने की इजाजत मिली तो जनता का महाकुंभ देखकर सरकार भी भौंचक रह गई। कई बैठकों और देर रात तक चलने वाली मीटिंग्स के बाद फिर से अन्ना के मांग को संसद के पटल पर रखा गया और सर्वसम्मति से पास कर दिया गया। मगर ये किसी को पता नहीं था कि कांग्रेस तो अंदर से बौखलाई हुई है और मौके की तलाश में है। आखिरकार सबसे अच्छा उपाय सूझा, क्यों न अन्ना टीम को ही तितर-वितर कर दिया जाए। न रहेगा बांस और न बजेेगी बांसुरी। अंततः एक-एक कर अन्ना टीम के सदस्यों की पोल खोली जाने लगी। दूसरों को भ्रष्टाचार मुक्त का पाठ पढ़ाने वाले अब भ्रष्टाचार के आरोपों से खुद ही घिरे हुए नजर आ रहे थे। कभी किरण पर हवाई यात्रा में हेरा-फेरी का आरोप लगा तो कभी अरविंद केजरीवाल पर चंद की रकम को लेकर धोखाधड़ी। उधर अन्ना मीडिया और सारे मसलों पर सफाई देते थक-थक गए तो मौनव्रत धारण कर लिया। कुछ चुनिंदा सवाल जिसे वो लेना चाहे, उसे लिखकर अपना जवाब सौंप देते। इन सबके बीच खार खाए अग्निवेश भी तो मौके का ही इंतजार कर रहे थे, उन्होंने भी आग में घी डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक ओर टीम अन्ना खुलेआम कांग्रेस के विरोध में प्रचार करते हुए चुनावों में वोट नहीं देने का अपील कर रही है तो दूसरी ओर कांग्रेस अन्ना टीम से जुड़े सभी लोगों का लेखा-जोखा कर उसे जगजाहिर कर रही है। ऐसे में अब केवल शीतकालीन सत्र का इंतजार किया जा रहा है, जब संसद में लोकपाल पेश किया जाएगा। फिलहाल यही उम्मीद की जा सकती है कि शीतकालीन सत्र में लोकपाल पेश होने के बाद अन्ना-कांग्रेस का विवाद सुलझ जाए!

Monday, May 16, 2011

अब तो रहम कीजिए, उतर जाइए न


(सुनील)
दिल्ली में कई जगह चक्का जाम, रास्ते पर खड़े आदमी हुए हालाकान। चलिए बहुत अच्छी बात है कि विपक्षी दल गाहे-बगाहे अपने वजूद का एहसास कराता रहता है। लेकिन इन सबके बीच अधिकांश नेताओं के जो बयान आ रहे थे, वह थोड़ा चकित करने वाला था। सभी के जुबान पर बस एक ही बात थी कि तेल के दाम एकदम से 5 रुपए कैसे बढ़ा दिए गए, यानी कि 1 से 2 रुपए बढ़ने चाहिए थे जो कि जायज होता। लड़ाई इस बात की नहीं होनी चाहिए कि तेल के दाम कितने बढ़ गए बल्कि लड़ाई इस बात की होनी चाहिए कि हफ्ते दर हफ्ते, महीने दर महीने महंगाई क्यों बढ़ रही है। ऐसा लगता है जैसे मोस्ट वांटेड अपराधियों की तरह सरकार ने भी एक लिस्ट तैयार कर रखा है और उसी लिस्ट के अनुसार एक एक कर सभी चीजों के दाम बढ़ाए जा रहे हैं। पेट्रोल हो गया, इसके बाद शायद नंबर है डीजल का, उसके बाद रसोई गैस की और उसके बाद वगैरह-वगैरह.....। इस लिस्ट को आम जनता में आरटीआई के तहत लागू कर दिया जाना चाहिए ताकि जनता पहले से इसके लिए तैयार रहे और विपक्ष को भी बिना वजह गर्मी में बेपानी न होना पड़ा। जैसे पेट्रोल को सरकार ने नियंत्रण मुक्त कर दिया है उसी तरह लगता है कि सरकार भी नियंत्रण मुक्त हो चुकी है। तभी न तो महंगाई पर नियंत्रण कर पा रही है, न ही भ्रष्टाचार पर और न ही काले धन को वापस लाए जाने की कवायद। मंत्री भी सारे बेलगाम ही दिख रहे हैं तभी बेहिसाब घोटालों का पर्दाफाश हो रहा है। जनबा सियासी चालों से थोड़ा ऊपर तो उठिए। केवल किसानों को पुलिस के डंडे खिलाने के बाद मरहम लगाने पहुंचेंगे, गरीबों के घर की रोटी खाएंगे और गरीब बच्चें को गोद में उठाएंगे लेकिन असल काम कब करेंगे। इतना भी इंतेहा मत लीजिए बेचारी जनता का, नहीं तो संसद में घुसकर अपनी बात रखने को मजबूर हो जाएंगे। फिर भी लगता है कि महंगाई पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता, भ्रष्टाचार को नहीं रोका जा सकता, काला धन विदेशी बैंकों की ही शोभा बढ़ाते रहेगा फिर आप क्यों राजगद्दी पर बैठकर इसे असुशोभित कर रहे हैं। उतर जाइए न, अब तो थोड़ा रहम कीजिए।

Friday, April 8, 2011

अन्ना बने दूसरे गांधी, गांधी परिवार ही मुश्किल में

सुनील (7827829555)

नवरात्र में उपवास रखकर लोग अपनी मनोकामना को पूरी कर रहे हैं तो दूसरी तरफ समाज सेवी अन्ना हजारे ने आमरण अनशन कर देश को भ्रष्टाचार मुक्त कराने के अपने संकल्प पर अडिग है और उनकी यही मनोकामना है कि देश को भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों से मुक्त कराया जाए। पूरे देश के लिए लड़ाई लड़ने वाले यह शख्स आज देश के दूसरा गांधी बन गए हैं। जिन्होंने गांधी को नहीं देखा वे अन्ना को देखकर यह अंदाजा लगा सकते हैं कि महात्मा गाधी ने किस तरह अहिंसा, आमरण अनशन और असहयोग आंदोलन का सहारा लेकर अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया था और अंग्रेजों से देश को मुक्ति दिलाई थी। उसी सदगी, ईमानदारी और नेकी के रास्ते पर चलते हुए यह अन्ना हजारे देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कराना चाहते हैं। उस समय लड़ाई पराए लोगों से थी लेकिन इस बार घर की लड़ाई है और घर के लोगों से ही है और इस कारण यह महायुद्ध पहले से कहीं ज्यादा मुश्किल और महत्वपूर्ण है। हालांकि उनका यह महायुद्ध रंग लाने लगा है और देश की करोड़ों जनता के साथ-साथ, बुद्धिजीवी वर्ग, बॉलीवुड कलाकार, छात्र और युवा उनका भरपूर सहयोग कर रहे हैं। इसी कारण वर्तमान सरकार भी पशोपेश में पड़ गई है। अपनी नींव हिलता देख खुद गांधी परिवार की वर्तमान मुखिया सोनिया गांधी को आगे आने पड़ा। सरकार को ज्यादा फजीहत न झेलनी पड़े, इस कारण उनकी कई मांगों को मान भी लिया गया है। वहीं शरद पवार ने जीओएम से पहले ही अपने पांव पीछे खींच लिए हैं, क्योंकि वे जानते है कि मेरा दामन कितना पाक है और भ्रष्टाचार में उनका कौन सा नंबर है। खैर, भ्रष्टाचार को लेकर अगर येदि नेताओं में इस तरह की गिनती की जाए तो यह बताना मुश्किल हो जाएगा कि पहले नंबर पर किस नेता को रखा जाए। सबसे महत्वूपर्ण यह है कि इस आंदोलन का आगाज तो हो चुका है लेकिन इसका अंजाम देश की कमजोर कड़ी और विकास में बाधक बन रहे रहे भ्रष्टाचार से मुक्ति से ही होना चाहिए। यह बहुत अच्छा अवसर है जब पूरी जनता खासकर युवाओं को एक बार फिर से मौका मिला है कि वो खुद को खुदीराम बोस, भगत सिंह, सुखदेव और आजाद साबित करें और भ्रष्टाचार जैसे दैत्य से देश को मुक्त कराएं। जय हिंद!

Wednesday, March 2, 2011

आम आदमी हर बार यूं ही छला जाता है

आम आदमी हर बार यूं ही छला जाता है


मिलने के नाम पर लूट लिया जाता है,

हम हाथ फैलाए रह जाते हैं

और किस्सा वहीं का वहीं रह जाता है

आम आदमी हर बार यूं ही छला जाता है

रोटी, कपड़ा और मकान तीन चीजें जो हैं जरूरी

रोटी तो पहले ही पड़ रही थी भारी

अब है तन से कपड़े गायब होने की बारी

मकान का तो पूछो ही मत

आसमां के नीचे आज भी है सोने की तैयारी

तो किस्सा वहीं का वहीं रह जाता है

और आम आदमी हर बार यूं ही छला जाता है

Monday, February 28, 2011

नेट के जरिए बढ़ रहा लव, सेक्स और धोखा

(sunil) 7827829555
प्यार अंधा होता है और इसमें पड़कर इंसान कभी-कभी इतना बेबस हो जाता है कि वह अच्छे-बुरे की पहचान भी नहीं कर पाता। फिर उसके पास पछताने के अलावा शेष कुछ भी नहीं रह जाता। लव, सेक्स और धोखा फिल्म की तर्ज पर ऐसा ही एक मामला प्रकाश में आया है। जहां केरल के एक बैंककर्मी युवक ने दिल्ली की एक विधवा महिला से इंटरनेट के जरिए संपर्क बढ़ाया। यह संपर्क प्रेम में बदलते देर न लगी और एक दिन युवक ने जब शादी का प्रस्ताव रखा तो महिला ने भी अपने अकेलेपन को देखते हुए हांमी भर दी। कुछ दिन तक तो सबकुछ ठीक चलता रहा लेकिन जब महिला ने उस पर साथ ले जाने के लिए दबाव बनाया तो उसे छोड़कर वह फरार हो गया। अब महिला अपनी फरियाद लेकर जगह-जगह जा रही है लेकिन जीवन भर शायद ही वह इस हादसे से उबर पाए। यह घटना हर खासम-खास के लिए एक सबक है जो प्यार में पड़कर अपना सबकुछ गंवा देते हैं। प्यार करने में कोई परहेज नहीं पर प्यार के लिए दिल और दिमाग दोनों अपने साथी के प्रति खुला रखें ताकि प्यार अंधा न कहलाए और आप धोखा न खाएं।

Sunday, February 20, 2011

लिव इन रिलेशन में मिल रही मासूम को सजा

 (सुनील) 7827829555
अदालत ने भले ही लिव इन रिलेशनशिप को स्वीकृति दे दी है और समाज का कुछ खास तबका इसे स्वीकार भी करने लगा है, फिर भी आए दिन इसे लेकर कुछ ऐसे उदाहरण देखने को मिल जाते हैं जो इस प्रकार के संबंधों पर कई तरह के प्रश्न खड़े कर देते हैं। आखिर इस तरह के रिलेशन कितने विश्वसनीय होते हैं।
नई दिल्ली के बी.एल कपूर मेमोरियल अस्पताल में ऐसा ही एक मामला देखने को मिला जिसने समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया है। जानकारी के मुताबिक मणिपुर की रहने वाली एक युवती जो अपने ब्यॉय फ्रेंड के साथ लिव इन रिलेशन में दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में रहते हैं। पिछले अप्रैल में जब वह युवती गर्भवती हो गई तो दोनों ने मिलकर गर्भपात करा लिया। इसके बाद वह फिर से गर्भवती हो गई लेकिन इस बार उसे पता नहीं चल पाया। प्रसव पीड़ा शुरू होने पर जब उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया तो उसने एक बच्ची को जन्म दिया लेकिन वह युवक उससे मिलने नहीं आया। डाक्टर उसे अब डिस्चार्ज करने चाहते थे लेकिन युवती का कहना था कि वह इस स्थिति में नहीं कि वह अपनी बच्ची का पालन-पोषण कर सके। दोनों के परिवार वाले पहले ही उनसे संबंध तोड़ चुके हैं। अब वह युवती इस बच्ची को बेचना चाहती है या अनाथालय में उसे डालना चाहती है। वह उस युवक से शादी नहीं करना चाहती बल्कि अभी भी लिव इन में ही रहना चाहती है। पुलिस पहले ही इसे सामाजिक मामला बताकर पल्ला झाड़ चुकी है। इन सबके बीच अब देखना है कि उस बच्ची का क्या होगा। आखिर बिना कसूर के ही उसे सजा क्यों मिल रही है।

Thursday, February 17, 2011

सरकार की व्यथा....

(सुनील) 7827829555


उनकी मजबूरियों की सजा हम भुगतते चले गए,
वो जीते रहे, हम मरते रहे
ये सिलसिला यूं ही चलता रहा
फिर पांच साल बाद वो याचक बन खडे हुए,
हमने फिर उनका स्वागत किया
और उसी मजबूरी का 'हाथ' पकड,
हम यूं ही चलते रहे
उनकी मजबूरियों की सजा हम भुगतते रहे...
गठबंधन और भ्रष्टाचार जैसे चोली-दामन बन गया,
राजा और नीरा का नया लॉबिस्ट बन गया
अब तो खेल-खेल में रुपयों से अपना घर भरने लगा
स्टेडियमों में खिलाडी नहीं कलमाडी पैदा होने लगा
वो मजबूरियां गिनाते रहे, हम सजा भुगतते रहे...
जमीन से आसमां तक,
समुद्र से पाताल तक,
नहीं कोई अछूता रहा
हर दिल में पाप है,
अब कहां कोई सच्चा रहा।
आज फिर जब उनसे रूबरू हुए
उसी व्यथा ले बैठे रहे
मजबूरियों का दामन ओढे
वो जीते रहे, हम मरते रहे......