जन लोकपाल को लेकर अन्ना-कांग्रेस के बीच लंबे समय से चली आ रही विवाद जल्द थमने के आसार नहीं नजर आ रहे हैं। कभी सरकार का पलड़ा भारी होता है तो कभी अन्ना टीम का। लेकिन यह कभी देखने को नहीं मिला कि दोनों के बीच शांतिपूवर्क हल निकालने का प्रयास किया जा रहा हो। दोनों ही अपने को श्रेष्ठ और अपने सदस्यों को भ्रष्टाचार विहीन दिखाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन देश को कैसे भ्रष्टाचार मुक्त बनाया जाए, आजादी के साढ़े छह दशक बाद भी किसी को रास्ता नहीं सूझ रहा है या फिर इस हमाम के मजे सभी लेना चाहते हैं और इसलिए इसे दिशा में ठोस पहले करने की जरूरत भी नहीं समझते।
खैर, अन्ना ने जब भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को देश के सामने लेकर आए तो ऐसा लगा कि काफी समय बाद फिर एक ऐसा शख्स आया है जो आम लोगों के लिए लड़ रहा है और इसी कारण देश के तमाम आवाम ने पूरी निष्ठा के साथ उनका साथ दिया। इसी दबाव में आकर सरकार ने भी अपनी ओर से आश्वासन दे डाला। सरकार ने मजबूत लोकपाल लाने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताई लेकिन बदले में अपनी कमजोर लोकपाल संसद में पेश कर दिया। गुस्साए अन्ना ने फिर से अपना अनशन का बिगुल फूंका, मगर सरकार को कहां ये चीज रास आने वाली थी। जैसे-तैस और काफी नौटंकी के बाद जब रामलीला मैदान में अन्ना को अनशन करने की इजाजत मिली तो जनता का महाकुंभ देखकर सरकार भी भौंचक रह गई। कई बैठकों और देर रात तक चलने वाली मीटिंग्स के बाद फिर से अन्ना के मांग को संसद के पटल पर रखा गया और सर्वसम्मति से पास कर दिया गया। मगर ये किसी को पता नहीं था कि कांग्रेस तो अंदर से बौखलाई हुई है और मौके की तलाश में है। आखिरकार सबसे अच्छा उपाय सूझा, क्यों न अन्ना टीम को ही तितर-वितर कर दिया जाए। न रहेगा बांस और न बजेेगी बांसुरी। अंततः एक-एक कर अन्ना टीम के सदस्यों की पोल खोली जाने लगी। दूसरों को भ्रष्टाचार मुक्त का पाठ पढ़ाने वाले अब भ्रष्टाचार के आरोपों से खुद ही घिरे हुए नजर आ रहे थे। कभी किरण पर हवाई यात्रा में हेरा-फेरी का आरोप लगा तो कभी अरविंद केजरीवाल पर चंद की रकम को लेकर धोखाधड़ी। उधर अन्ना मीडिया और सारे मसलों पर सफाई देते थक-थक गए तो मौनव्रत धारण कर लिया। कुछ चुनिंदा सवाल जिसे वो लेना चाहे, उसे लिखकर अपना जवाब सौंप देते। इन सबके बीच खार खाए अग्निवेश भी तो मौके का ही इंतजार कर रहे थे, उन्होंने भी आग में घी डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक ओर टीम अन्ना खुलेआम कांग्रेस के विरोध में प्रचार करते हुए चुनावों में वोट नहीं देने का अपील कर रही है तो दूसरी ओर कांग्रेस अन्ना टीम से जुड़े सभी लोगों का लेखा-जोखा कर उसे जगजाहिर कर रही है। ऐसे में अब केवल शीतकालीन सत्र का इंतजार किया जा रहा है, जब संसद में लोकपाल पेश किया जाएगा। फिलहाल यही उम्मीद की जा सकती है कि शीतकालीन सत्र में लोकपाल पेश होने के बाद अन्ना-कांग्रेस का विवाद सुलझ जाए!
खैर, अन्ना ने जब भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को देश के सामने लेकर आए तो ऐसा लगा कि काफी समय बाद फिर एक ऐसा शख्स आया है जो आम लोगों के लिए लड़ रहा है और इसी कारण देश के तमाम आवाम ने पूरी निष्ठा के साथ उनका साथ दिया। इसी दबाव में आकर सरकार ने भी अपनी ओर से आश्वासन दे डाला। सरकार ने मजबूत लोकपाल लाने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताई लेकिन बदले में अपनी कमजोर लोकपाल संसद में पेश कर दिया। गुस्साए अन्ना ने फिर से अपना अनशन का बिगुल फूंका, मगर सरकार को कहां ये चीज रास आने वाली थी। जैसे-तैस और काफी नौटंकी के बाद जब रामलीला मैदान में अन्ना को अनशन करने की इजाजत मिली तो जनता का महाकुंभ देखकर सरकार भी भौंचक रह गई। कई बैठकों और देर रात तक चलने वाली मीटिंग्स के बाद फिर से अन्ना के मांग को संसद के पटल पर रखा गया और सर्वसम्मति से पास कर दिया गया। मगर ये किसी को पता नहीं था कि कांग्रेस तो अंदर से बौखलाई हुई है और मौके की तलाश में है। आखिरकार सबसे अच्छा उपाय सूझा, क्यों न अन्ना टीम को ही तितर-वितर कर दिया जाए। न रहेगा बांस और न बजेेगी बांसुरी। अंततः एक-एक कर अन्ना टीम के सदस्यों की पोल खोली जाने लगी। दूसरों को भ्रष्टाचार मुक्त का पाठ पढ़ाने वाले अब भ्रष्टाचार के आरोपों से खुद ही घिरे हुए नजर आ रहे थे। कभी किरण पर हवाई यात्रा में हेरा-फेरी का आरोप लगा तो कभी अरविंद केजरीवाल पर चंद की रकम को लेकर धोखाधड़ी। उधर अन्ना मीडिया और सारे मसलों पर सफाई देते थक-थक गए तो मौनव्रत धारण कर लिया। कुछ चुनिंदा सवाल जिसे वो लेना चाहे, उसे लिखकर अपना जवाब सौंप देते। इन सबके बीच खार खाए अग्निवेश भी तो मौके का ही इंतजार कर रहे थे, उन्होंने भी आग में घी डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक ओर टीम अन्ना खुलेआम कांग्रेस के विरोध में प्रचार करते हुए चुनावों में वोट नहीं देने का अपील कर रही है तो दूसरी ओर कांग्रेस अन्ना टीम से जुड़े सभी लोगों का लेखा-जोखा कर उसे जगजाहिर कर रही है। ऐसे में अब केवल शीतकालीन सत्र का इंतजार किया जा रहा है, जब संसद में लोकपाल पेश किया जाएगा। फिलहाल यही उम्मीद की जा सकती है कि शीतकालीन सत्र में लोकपाल पेश होने के बाद अन्ना-कांग्रेस का विवाद सुलझ जाए!