Wednesday, July 7, 2010

जनता लाचार, विरोधी बीमार, सरकार बेकार

(सुनील)

बर्दाश्त से बाहर होती जा रही महंगाई न जाने आने वाले दिनों में किस मुकाम तक पहुंचेगी। हालांकि इसे मुकाम तक पहुंचाने वाले प्रतिदिन कुछ ऐसे बयानों से रूबरू कराते हैं, जिसे सुनकर जनता केवल 'उफ महंगाई, हाय-हाय मंहगाई' करके रह जाती है और इस महंगाई का विरोध करने वाले सब कुछ बंद की तैयारी में जुट जाते हैं। एक महंगाई को सफल बनाने में लगा हुआ है तो दूसरा बंद को सफल बनाने में।
सरकार सभी चीजों को नियंत्रण मुक्त किए जाने पर जोर दे रही है। डर तो इस बात का है कि इस चक्कर में कहीं देश का बागडोर नियंत्रण मुक्त न हो जाए। कश्मीर पहले से ही नियंत्रण मुक्त चल रहा है। ऐसे में महंगाई से ऊब कर जनता का मूड बिगड गया तो देश भी आपके हाथों से कहीं नियंत्रण मुक्त न हो जाए। वैसे भी आजकल हाथ का साथ पाकर डर लग रहा है, इसलिए मैं तो अब अपने लोगों के हाथों से भी दूर रहता हूं। हालांकि फूल के चक्कर में कहीं 'फूल' न बन जाऊं और कीचड में अपने आप को धंसा हुआ पाऊं, इस बात से भी उतनी ही डर लगता है। बेचारी जनता करें भी तो क्या करे। हर तरफ से परेशानी ही परेशानी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई देश में ऐसी परिस्थितियां बनती जा रही हैं कि वस्तुओं की कीमतों में इजाफा करना जरूरी हो गई है। यदि हां, तो आने वाला समय काफी भयावह हो सकता है। एक समय जब देश का कमान एक जाने माने अर्थशास्त्री के हाथों में जा रहा था तो लोगों को सुकून था कि चलो महंगाई से काफी हद तक नियत रहेगी। लेकिन ठीक इसके उलट कीमतें अनियमित दर से बढती ही जा रही हैं। आमदनी अठन्नी और न चाहते हुए भी खर्चा रुपया करना पड रहा है। जनता तो पानी-पानी, नहीं-नहीं-नहीं... बेपानी हो रही है, क्योंकि अब पानी भी सस्ता कहां रहा। ऐसे में सरकार की यह मनमानी कब तक चलेगी।

2 comments:

  1. sunil bhaaayi achchi abhivykti he lekin yeh desh men jo kuch ho rhaa he deshvasi srkaar nhin kr rhi he yeh b ke piche kevl amerikaa he or amerikaa ke ishaare pr hi desh men mhngaayi kaa yeh nngaa khel amerikaa ke bhutpurv srvent mnmohn dvaaraa krvaayaa jaa rhaa he ise aap or hmen hmaares saathiyon ko jaagrt kr sudhaarne ki koshish krnaa he . akhtar khan akela kota rajthan

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