(सुनील) http://www.sunilvani.blogspot.com/ 7827829555
काले धन को उजागर होने के बाद यह बात तो साफ हो गई है कि भारत के पास अथाह धन है जो चाहे तो अमेरिका और चीन को पीछे छोडते हुए आर्थिक संपन्नता के मामले में इनसे आगे निकल सकता है। हालांकि यह कब तक संभव हो पाएगा इस मसले पर बडे-बडे ज्योतिषियों के गुणा-भाग भी काम नहीं आ रहा हैं। सरकार भी ऊहापोह की स्थिति में है और लगातार इस मामले की हीलाहवाली कर रही है। सरकार को भी पता है कि इस काले धन के साथ अनेक ऐसे सफेदपोश जुडे हुए हैं, जो खुद उनका ढाल बने हुए हैं। ऐसे में सरकार के अस्थिर होने का खतरा है, साथ ही जनता का विश्वास भी इन तथाकथित सफेदपोशों के प्रति कमजोर होगा। शायद यही वजह है कि सरकार भी इन नामों को खुलासा करने से कतरा रही है। जैसे भारतीय संस्कृति में पत्नियां अपने पति का नाम लेने से कतराती है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट इस काले धन को राष्ट्रधन बताकर सरकार पर उन नामों को जनता के सामने लाने का दबाव बना रही है लेकिन बडे-बडे नेताओं और मंत्रियों की इस मामले पर चुप्पी कुछ और ही इशारा कर रही है। क्या सरकार पर बाहरी दबाव काम कर रही है, जिसके कारण सरकार भी असमंजस की स्थिति में है। आखिर सरकार को अपनी साख और ताख भी बचानी है लेकिन इस मसले पर आखिरकार कोई ठोस निर्णय तो लेना ही होगा। आखिर सवाल 700 खराब का है जो भारत को अन्य विकसित देशों के मुकाबले एक अलग पहचान दे सकती है। भूख, गरीबी, बिजली, शौचालय, परिवहन जैसे मूलभूत समस्याओं से अब तक जूझ रहे लोगों के लिए यह पैसा वरदान साबित हो सकता है। यह पैसा ग्रामीण परिवेश को भी बदलने में कारगर साबित हो सकता है। साथ ही सरकार भी सरकारी खजाने का रोना नहीं रो पाएगी। इन सबके बीच अब सबसे महत्वपूर्ण यह है कि काले धन को लाने में सफेदपोश अपनी भूमिका किस प्रकार निभाते हैं। डर इस बात का है कि इनकी कथनी और करनी में हमेशा की तरह अंतर न आ जाए।
काले धन को उजागर होने के बाद यह बात तो साफ हो गई है कि भारत के पास अथाह धन है जो चाहे तो अमेरिका और चीन को पीछे छोडते हुए आर्थिक संपन्नता के मामले में इनसे आगे निकल सकता है। हालांकि यह कब तक संभव हो पाएगा इस मसले पर बडे-बडे ज्योतिषियों के गुणा-भाग भी काम नहीं आ रहा हैं। सरकार भी ऊहापोह की स्थिति में है और लगातार इस मामले की हीलाहवाली कर रही है। सरकार को भी पता है कि इस काले धन के साथ अनेक ऐसे सफेदपोश जुडे हुए हैं, जो खुद उनका ढाल बने हुए हैं। ऐसे में सरकार के अस्थिर होने का खतरा है, साथ ही जनता का विश्वास भी इन तथाकथित सफेदपोशों के प्रति कमजोर होगा। शायद यही वजह है कि सरकार भी इन नामों को खुलासा करने से कतरा रही है। जैसे भारतीय संस्कृति में पत्नियां अपने पति का नाम लेने से कतराती है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट इस काले धन को राष्ट्रधन बताकर सरकार पर उन नामों को जनता के सामने लाने का दबाव बना रही है लेकिन बडे-बडे नेताओं और मंत्रियों की इस मामले पर चुप्पी कुछ और ही इशारा कर रही है। क्या सरकार पर बाहरी दबाव काम कर रही है, जिसके कारण सरकार भी असमंजस की स्थिति में है। आखिर सरकार को अपनी साख और ताख भी बचानी है लेकिन इस मसले पर आखिरकार कोई ठोस निर्णय तो लेना ही होगा। आखिर सवाल 700 खराब का है जो भारत को अन्य विकसित देशों के मुकाबले एक अलग पहचान दे सकती है। भूख, गरीबी, बिजली, शौचालय, परिवहन जैसे मूलभूत समस्याओं से अब तक जूझ रहे लोगों के लिए यह पैसा वरदान साबित हो सकता है। यह पैसा ग्रामीण परिवेश को भी बदलने में कारगर साबित हो सकता है। साथ ही सरकार भी सरकारी खजाने का रोना नहीं रो पाएगी। इन सबके बीच अब सबसे महत्वपूर्ण यह है कि काले धन को लाने में सफेदपोश अपनी भूमिका किस प्रकार निभाते हैं। डर इस बात का है कि इनकी कथनी और करनी में हमेशा की तरह अंतर न आ जाए।
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