(सुनील)
दिल्ली में कई जगह चक्का जाम, रास्ते पर खड़े आदमी हुए हालाकान। चलिए बहुत अच्छी बात है कि विपक्षी दल गाहे-बगाहे अपने वजूद का एहसास कराता रहता है। लेकिन इन सबके बीच अधिकांश नेताओं के जो बयान आ रहे थे, वह थोड़ा चकित करने वाला था। सभी के जुबान पर बस एक ही बात थी कि तेल के दाम एकदम से 5 रुपए कैसे बढ़ा दिए गए, यानी कि 1 से 2 रुपए बढ़ने चाहिए थे जो कि जायज होता। लड़ाई इस बात की नहीं होनी चाहिए कि तेल के दाम कितने बढ़ गए बल्कि लड़ाई इस बात की होनी चाहिए कि हफ्ते दर हफ्ते, महीने दर महीने महंगाई क्यों बढ़ रही है। ऐसा लगता है जैसे मोस्ट वांटेड अपराधियों की तरह सरकार ने भी एक लिस्ट तैयार कर रखा है और उसी लिस्ट के अनुसार एक एक कर सभी चीजों के दाम बढ़ाए जा रहे हैं। पेट्रोल हो गया, इसके बाद शायद नंबर है डीजल का, उसके बाद रसोई गैस की और उसके बाद वगैरह-वगैरह.....। इस लिस्ट को आम जनता में आरटीआई के तहत लागू कर दिया जाना चाहिए ताकि जनता पहले से इसके लिए तैयार रहे और विपक्ष को भी बिना वजह गर्मी में बेपानी न होना पड़ा। जैसे पेट्रोल को सरकार ने नियंत्रण मुक्त कर दिया है उसी तरह लगता है कि सरकार भी नियंत्रण मुक्त हो चुकी है। तभी न तो महंगाई पर नियंत्रण कर पा रही है, न ही भ्रष्टाचार पर और न ही काले धन को वापस लाए जाने की कवायद। मंत्री भी सारे बेलगाम ही दिख रहे हैं तभी बेहिसाब घोटालों का पर्दाफाश हो रहा है। जनबा सियासी चालों से थोड़ा ऊपर तो उठिए। केवल किसानों को पुलिस के डंडे खिलाने के बाद मरहम लगाने पहुंचेंगे, गरीबों के घर की रोटी खाएंगे और गरीब बच्चें को गोद में उठाएंगे लेकिन असल काम कब करेंगे। इतना भी इंतेहा मत लीजिए बेचारी जनता का, नहीं तो संसद में घुसकर अपनी बात रखने को मजबूर हो जाएंगे। फिर भी लगता है कि महंगाई पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता, भ्रष्टाचार को नहीं रोका जा सकता, काला धन विदेशी बैंकों की ही शोभा बढ़ाते रहेगा फिर आप क्यों राजगद्दी पर बैठकर इसे असुशोभित कर रहे हैं। उतर जाइए न, अब तो थोड़ा रहम कीजिए।
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