(सुनील)
वतन का खाया नमक तो नमक हराम बनो
राजा और सुरेश कलमाडी जैसा बेईमान बनो
पराई नार और पराया धन पर जितना हो नजर डालो
एक नहीं कई नीरा को रातों रात बना डालो
जनता का पैसा है, इसे अपना समझ घर में घुसा डालो
कागजों और फाइलों का क्या है
जब चाहे गुम कर डालो
पैसे का खेल है,
छानबीन का तमाशा कर डालो
सीने पे ठोक के हाथ
अपने आप पे गुमां करो
सरकार और विपक्ष का क्या है,
एक ही थाली के चट्टे-बट्टे
खुद भी खाओ और इन्हें भी खिला डालो
क्योंकि
ये आदत तो वो आदत है,
जो रातों-रात अपना घर भरे दे, भर दे, भर दे रे..
कि कोई नया गेम शुरू करवा दो
बाकी लोगों को भी भ्रष्टाचार और घोटाले का मौका दो।
Saturday, December 25, 2010
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क्या बात है.. बढ़िया व्यंग्य... बधाई
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