Wednesday, February 9, 2011

खून के रिश्तों के साथ खूनी खेल

सुनील वाणी
(सुनील) 7827829555

 हाल के समय में रिश्तों से जुडे ऐसे ऐसे कत्ल और हत्याएं देखने को मिली है कि एकबारगी यह सोचने पर जरूर मजबूर करता है कि क्या यह वही देश है जहां संस्कृति व परंपरा और पारिवारिक रिश्तों का अद्भुत मिलन और उसकी पवित्रता पर हमें गर्व होता था। आपको विगत कुछ दिनों में हुए पारिवारिक हत्याओं से जुडे कुछ सच्चाई से रूबरू कराता हूं जो कि समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों में क्राइम के मामले में सुर्खियों में रहे। एक आधुनिक बीपीओ पत्नी ने अपने पति की हत्या कर दी, केवल इसलिए कि उसके पति के विचार आधुनिक नहीं थे और इस कारण उनसे मेल जोल नहीं खाते थे। दूसरा, एक ब्यूटिशियन पत्नी ने अपने विकलांग पति की हत्या कर दी, क्योंकि विकलांग पति से उसे सुख नहीं मिल पा रहा था(चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक)। एक बहन ने अपने भाई की इसलिए हत्या कर दी क्योंकि वह उसके प्रेम में रोडा बन रहा था, इसमें उसके पिता ने भी बखूबी साथ दिया। एक पोते ने पैसे के लिए अपनी दादी की हत्या कर दी। एक बेटे की ख्वाहिश पूरी न होने पर उसने अपने पिता की हत्या कर दी। इस तरह और न जाने कितने सारे उदाहरण हैं जो रिश्तों की पवित्रता और इसकी मजबूती पर सवाल उठा रहे हैं। इस देश की जो पारिवारिक पहचान है वह दुनिया के कोने-कोने में प्रसिध्द है। पर अब इन रिश्तों पर ही सवालिया निशान उठने लगे हैं। इन घटनाओं को देख कर तो ऐसा लगता है कि कौन किसकी हत्या कर दे, समझ से परे हैं। रिश्तों की ये सामंजस्य जैसे खत्म होता जा रहा है। रिश्तों की जो हमारी मजबूत बुनियाद थी, वो खत्म होते जा रही है। कहीं पश्चिमी सभ्यता में ढलने का तो यह नतीजा नहीं है। अगर ऐसा है तो फिर क्यूं न हम अपनी भारतीय सभ्यता से ही जुड जाए जहां अपने रिश्तों का ही नहीं बल्कि दूसरों के रिश्तों का भी सम्मान किया जाता है।

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